Sunday 10 March 2013

महाशिवरात्रि पर्व 2013

                         महाशिवरात्रि पर्व 2013
                 Maha Shivaratri Festival 2013 




Maha Shivaratri Festivalहाशिवरात्रि का पर्व प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. वैसे तो हिन्दु ग्रंथों तथा मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को प्रत्येक माह की चतुर्दशी तिथि प्रिय है परन्तु सभी चतुर्दशी तिथियों में फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को अति प्रिय है. सत्वगुण, रजोगुण तथा तमोगुण तीनों गुणों में से तमोगुण की अधिकता दिन की अपेक्षा रात्रि में अधिक है. इस कारण भगवान शिव ने अपने लिंग के प्रादुर्भाव के लिए फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की मध्यरात्रि को चुना.

महाशिवरात्रि पर्व का महत्व सभी पुराणों में मिलता है. गरुड़ पुराण, पद्म पुराण, स्कंद पुराण, शिव पुराण तथा अग्नि पुराण सभी में महाशिवरात्रि पर्व की महिमा का वर्णन मिलता है. शिवरात्रि पर्व के बारे में केवल एक प्रकार की कथा नहीं है. कई कथाएं हैं परन्तु सभी कथाओं का स्वरुप तथा वर्णन समान ही है. लेकिन इस पर्व का महत्व एक ही है. इस दिन व्यक्ति व्रत रखते हैं तथा शिव महिमा का गुणगान करते हैं और शिव भगवान की बिल्व पत्रों से पूजा-अर्चना करते हैं. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इस सृष्टि से पहले सत और असत नहीं थे केवल भगवान शिव थे. 



Read agriculture ( Please Add Skeep ) .................... 



महाशिवरात्रि पर्व का महत्व
Importance of Maha Shivaratri Festival

महाशिवरात्रि का पर्व केवल दिखावे मात्र का पर्व नहीं है. ना ही यह दूसरों की देखा-देखी मनाने वाला पर्व है. यह बहुत ही महान पर्व है इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहा गया है. शिव को महाकाल कहा गया है. परमेश्वर के तीन रुपों में से एक रुप की उपासना महाशिवरात्रि के दिन की जाती है. मनुष्य को भगवान के तीन रुपों में से एक रुप का सरल तरीके से उपासना करने का वरदान महाशिवरात्रि के रुप में मिला है. इस पर्व के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के मुख से भी कहलावाया है :-

"शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर सपनेहु मोहि नहिं भावा।"


इस पर्व के महत्व को शिवसागर में और अधिक महत्ता मिली है :-

"धारयत्यखिलं दैवत्यं विष्णु विरंचि शक्तिसंयुतम। जगदस्तित्वं यंत्रमंत्रं नमामि तंत्रात्मकं शिवम।"


इसका अर्थ यह है कि विविध शक्तियाँ, विष्णु तथा ब्रह्मा जिसके कारण देवी व देवता के रुप में विराजमान हैं, जिनके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र,मंत्र हैं. ऎसे तंत्र के रुप में विराजमान भगवान शिव को नमस्कार है. 



Read Children Stori ( Please Add Skeep ) ........................... 



महाशिवरात्रि का ज्योतिषीय महत्व
Astrological Importance of Maha Shivaratri

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा बहुत क्षीण अवस्था में पहुँच जाते हैं. चन्द्रमा के अंदर सृष्टि को ऊर्जा देने की सामर्थ्य नहीं होती. बलहीन चन्द्रमा अपनी ऊर्जा देने में असमर्थ होते हैं. चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है. इसी कारण मन के भाव भी चन्द्रमा की कलाओं के जैसे घटते-बढ़ते रहते हैं. कई बार व्यक्ति का मन बहुत अधिक दुखी होता है और वह मानसिक कठिनाईयों का सामना करता है. चन्द्रमा शिव भगवान के मस्तक की शोभा बढा़ते हैं. इसलिए सामान्य प्राणी यदि चन्द्रमा की कृपा पाना चाहता है तो उसे भगवान शिव की भक्ति करनी आवश्यक है. वैसे तो प्रत्येक मास शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने से चन्द्रमा बलशाली होता है. परन्तु यदि प्रत्येक माह पूजन नहीं किया जा सकता है तब महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का विधिवत तरीके से पूजन किया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त सूर्यदेव भी महाशिवरात्रि तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं. इस समय ऋतु परिवर्तन का समय भी होता है. ऋतु परिवर्तन के कारण यह समय अत्यन्त शुभ माना गया है. यह समय वसंत ऋतु के आगमन का समय है. वसंत काल के कारण मन उल्लास तथा उमंगों से भरा होता है. इसी समय कामदेव का भी विकास होता है. इस कारण कामजनित भावनाओं पर अंकुश केवल भगवान की आराधना करने से ही लगा सकते हैं. भगवान शिव को काम निहंता माना गया है. अत: इस ऋतु में महाशिवरात्रि के दिन उनका पूजन करने से कामजनित भावनाओं पर साधारण मनुष्य अंकुश लगा सकता है. इस समय भगवान शिव की आराधना सर्वश्रेष्ठ है. भारतवर्ष के बारह ज्योतिर्लिंगों का संबंध ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बारह चन्द्र राशियों के साथ माना गया है.

महाशिवरात्रि के बारे में कहा गया है कि जिस शिवरात्रि में त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा अमावस्या तीनों ही तिथियों का स्पर्श होता है, उस शिवरात्रि को अति उत्तम माना गया है. महाशिवरात्रि के विषय में अनेकों मान्यताएँ हैं. उनमें से एक मान्यता के अनुसार भगवान शिवजी ने इस दिन ब्रह्मा के रुप से रुद्र के रुप में अवतार लिया था. इस दिन प्रलय के समय प्रदोष के दिन भगवान शिव तांडव करते हुए समस्त ब्रह्माण्ड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं. इस कारण इसे महाशिवरात्रि कहा गया है.

इसी कारण महाशिवरात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है. भगवान शिव सृष्टि के विनाश तथा पुन:स्थापना दोनों के मध्य एक कडी़ जोड़ने का कार्य करते हैं. प्रलय का अर्थ है - कष्ट और पुन:स्थापना का अर्थ है - सुख. अत: ज्योतिष शास्त्र में भगवान शिव को सुख देने का आधार माना गया है. इसीलिए शिवरात्रि पर अनेकों ग्रंथों में अनेक प्रकार से भगवान शिव की आराधना करने की बात कही गई है. अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने का महत्व भी बताया गया है.

Read Joke ( Please Skeep Ads ) ..............,  





भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga of Lord Shiva

भगवान शिव के समस्त भारत में 12 ज्योतिर्लिंग मुख्य हैं. जो निम्नलिखित हैं :-

  1. सौराष्ट्र प्रदेश अर्थात काठियावाड़ में श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग.
  2. श्रीशैल पर्वत पर कृष्णा जिले के कुर्नूल में श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग.
  3. उज्जैन में श्रीमहाकाल ज्योतिर्लिंग.
  4. मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के एक द्वीप पर मालवा क्षेत्र में श्रीऊँकारेश्वर ज्योतिर्लिंग. ऊँकारेश्वर को अमलेश्वर भी कहा जाता है.
  5. झारखंड में देवघर जिले में वैद्यनाथधाम ज्योतिर्लिंग.
  6. उत्तराखण्ड में श्रीकेदारनाथ ज्योतिर्लिंग.
  7. महाराष्ट्र में भीमा नदी के किनारे श्रीभीमाशंकर ज्योतिर्लिंग.
  8. उत्तर प्रदेश में वाराणसी में श्रीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग सभी मुख्य ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
  9. महाराष्ट्र के नासिक जिले में श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग.
  10. गुजरात के द्वारका जिले में श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग.
  11. तमिलनाडु में रामनाड जिले में श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग है. इसे श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ भगवान श्रीराम ने अराध्यदेव शंकर जी की पूजा की थी.
  12. महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले में श्रीघुश्मेश्वर अथवा श्रीगिरीश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग है.  



Contage Email  




12 ज्योतिर्लिंगों का संबंध 12 चन्द्र राशियों से
Relation of 12 Jyotirlinga from 12 Moon Signs

भगवान शिव के संबंध में अनेकों पौराणिक कथाएं पुराणों तथा ग्रंथों में मिलती है. महाशिवरात्रि के बारे में भी अनेकों पौराणिक कथाएं. हैं. जिस प्रकार भगवान शिव के त्रिशूल, डमरू आदि सभी वस्तुओं तथा शिव का संबंध नौ ग्रहों से जोडा़ गया है. उसी प्रकार भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का संबंध बारह चन्द्र राशियों से जोडा़ गया है. इन राशियों का वर्णन इस प्रकार है.

  1. मेष राशि का संबंध श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग से है.
  2. वृष राशि का संबंध श्रीशैल ज्योतिर्लिंग से है.
  3. मिथुन राशि का संबंध श्रीमहाकाल ज्योतिर्लिंग से है.
  4. कर्क राशि का संबंध श्रीऊँकारेश्वर अथवा अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग से है.
  5. सिंह राशि का संबंध श्रीवैद्यनाथधाम ज्योतिर्लिंग से है.
  6. कन्या राशि का संबंध श्रीभीमशंकर ज्योतिर्लिंग से है.
  7. तुला राशि का संबंध श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग से है.
  8. वृश्चिक राशि का संबंध श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग से है.
  9. धनु राशि का संबंध श्रीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जोडा़ गया है.
  10. मकर राशि का संबंध श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जोडा़ गया है.
  11. कुम्भ राशि का संबंध श्रीकेदारनाथधाम से जोडा़ गया है.
  12. मीन राशि का संबंध श्रीघुश्मेश्वर अथवा श्रीगिरीश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग से है.




Read vigyan ( Please Add skeep ) .........................