Sunday 17 February 2013

प्रश्न कुण्डली से जानिए कैसा होगा जीवन साथी (Know about your Life Partner from prashan Kundli)

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विवाह संस्कार से न केवल स्त्री और पुरूष का मिलन होता है, बल्कि एक नई जिन्दगी का आगाज़ भी होता है। वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है कि आपका जीवनसाथी आपके अनुकूल हो। अगर आप जानना चाहते हैं कि आपका जीवन साथी कैसा होगा तो प्रश्न कुण्डली से आपको इसका उत्तर मिल सकता है।
विवाह के विषय में कहा जाता है कि किसकी जोड़ी किससे बनेगी यह विधाता तय करता है, फिर भी हम आप कर्मवश सुयोग्य जीवनसाथी की तलाश करते हैं। ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार जीवनसाथी कैसा होगा यह ग्रह तय करते हैं(planets decided your life partner) अर्थात आपकी कुण्डली में स्थित ग्रहों से यह पता लगाया जा सकता है कि आपका विवाह कब होगा(According to the stages of planet in your kundli know when will you get married)  और आपका जीवनसाथी कैसा होगा। आपकी प्रश्न कुण्डली में ग्रह किस प्रकार इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं आइये इस पर विचार करें।

ज्योतिर्विदों के मतानुसार विवाह के लिए प्रश्नकुण्डली में सप्तम भाव से विचार किया जाता है(According to the Astrologer,  Seventh place is very helpful for Marriage in Prashan kundli) । प्रश्न कुण्डली स्त्री की है तो पति के कारक बृहस्पति की स्थिति देखी जाती है(If Prashan kundli is of Female then always see that the stage of  Male Factor  is Jupiter) । प्रश्न कुण्डली अगर पुरूष की है तो पत्नी के कारक ग्रह शुक्र ग्रह से आंकलन किया जाता है(If prashan kundli is of Male then Planet of Female Factor is always assessment from venus) ।

 कुछ अन्य स्थितियों में भी विवाह की संभावना बनती है जिनका जिक्र यहां मौजूद है(Marriage is possible in some other stages also):

1. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न(Ascendent), द्वितीय(Second ), चतुर्थ(Fourth), सप्तम भाव में चन्द्रमा-शुक्र की युति (Conjunction of Moon And Venus in Seventh Place)हो या दोनों ग्रह उपरोक्त भावों को अपनी दृष्टि(Aspect of both the Planets) से देखें तो शीघ्र विवाह होता है।

2.उपरोक्त स्थितियों के अलावा यदि लग्न/लग्नेश(Ascendent or Lord of Ascendent), सप्तम भाव/सप्तमेश(Seventh Place And Lord of Seventh Place) तथा विवाह के कारक ग्रह शुक्र (Planet of Marriage Factor is Venus)एवं बृहस्पति सहित चन्द्रमा यदि शुभ स्थिति में हों तो विवाह की संभावना प्रबल होती है ( if stage of Moon with Jupiter is good the Possibilities of marriage is strong) ।

वैवाहिक जीवन में सबकुछ सामान्य होने के बावजूद कई बार ऐसा भी होता है कि अचानक पति पत्नी के मध्य मतभेद एवं संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है और वैवाहिक जीवन में गतिरोध दिखने लगता है।

वैवाहिक जीवन में का क्या कारण है आइये इसपर दृष्टि डालते हैं(Causes of break up in marriage life)।

1.प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा (Moon in Ascendent of prashan kundli)व सप्तम में मंगल (Mars)हो या पाप ग्रह(Misdeed Planet)लग्न में तथा चन्द्रमा षष्टम या अष्टम भाव(Moon is Sixth and Eighth Place) में हो तो इस स्थिति में वैवाहिक जीवन में तनाव की स्थिति पैदा होती है।

2.आपकी प्रश्न कुण्डली में अगर कृष्ण पक्ष (Aspect of Krishana in your Prashan kundli)का चन्द्रमा समराशि में होकर षष्टम-अष्टम भाव(Seventh and Eighth Place) में स्थित हों तथा इस चन्द्र पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो इस स्थिति में आप तलाक की स्थिति तक पहुंच जाते और कई बार इस ग्रह स्थिति में पति पत्नी के बीच सम्बन्ध विच्छेद भी हो जाता है।

प्रश्न कुण्डली के विभिन्न भावों में स्थित होकर पाप ग्रह किस प्रकार से आपको हानि पहुंचाते हैं आइये इस पर गौर करते हैं।

1.ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार अगर आप वर के सम्बन्ध में प्रश्न करते हैं और इस प्रश्न के जवाब में तैयार किये गये कुण्डली में अगर लग्न(Ascendent) स्थान पर पाप ग्रह हों तो वर के लिए अशुभ स्थिति होती है, इस स्थिति में वर को कष्ट से गुजरना होता है।

2.प्रश्न कुण्डली के पंचम भाव(Fifth House) में पाप ग्रह होने पर संतान के लिए कष्टप्रद होता है अर्थात इस स्थिति में पति पत्नी संतानहीन हो सकते है।

3.प्रश्न कुण्डली के सप्तम भाव(Seventh House) में पाप ग्रह होने पर कन्या के लिए कठिन स्थिति होती है। इस स्थिति में कन्या को संकट से गुज़रना पड़ता है।

4.प्रश्न कुण्डली के अष्टम भाव (Eighth House)में पाप ग्रह की मौजूदगी बहुत ही अनिष्टकारी मानी जाती है, यह ग्रह स्थिति पति व पत्नी दोनों के लिए ही दु:खदायी कही गयी है।

5.ज्योतिर्विदों के मतानुसार यदि प्रश्न कुण्डली के षष्टम/अष्टम भाव में चन्द्रमा शुभ (Moon is good in Sixth and Eighth Place) ग्रहों से युक्त या दृष्ट नहीं हो तो 8 वर्षों के अन्तराल में वर कन्या के जीवन पर आघात होता है।

ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार अगर आपकी प्रश्न कुण्डली में लग्न/लग्नेश, सप्तम भाव/ सप्तमेश तथा विवाह के कारक ग्रह बृहस्पति, शुक्र एवं चन्द्रमा अशुभ अथवा कमजोर स्थिति (Debilitated Stage)में हों तो विवाह के सम्बन्ध में बाधा एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

निष्कर्ष से हम कह सकते हैं कि प्रश्न कुण्डली में ग्रहों की स्थिति से हम विवाह से सम्बन्धित तामम प्रश्नों को जान सकते हैं। अगर आपके मन में भी इस विषय से सम्बन्धित कोई प्रश्न है तो प्रश्न कुण्डली से स्पष्ट जवाब प्राप्त कर सकते हैं।
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प्रश्न कुण्डली से आध्यात्मिकता का विचार (Spiritual assessment through prashna kundli)

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यह सृष्टि ईश्वर की सुन्दर कृति हैं. शास्त्रों के मुताबिक सृष्टि में 84 लाख योनिया हैं, मनुष्य योनि इन सभी में श्रेष्ठ माना गयी है. संत जन कहते हैं कि मानव जीवन मिलना सबसे कठिन है,
काफी तपस्या के पश्चात जीवात्मा को मानव काया प्राप्त होती है. मानव काया को मुक्ति का आधार माना गया है, इस योनि में जीवात्मा ज्ञान प्राप्त करता है और ईश्वर भक्ति के द्वारा जीवात्मा परम सत्य में विलीन हो जाता है. इस उद्देशय से ही ईश्वर जीव को मानव शरीर प्रदान करता है परंतु मानव काया मिलते ही हम वास्तविक लक्ष्य से भटककर पुन: तुच्क्ष योनियों में गमन करते हैं. संत जन एवं ज्योतिषाचार्य कहते हैं मानव शरीर की प्राप्ति के पश्चात भी अध्यात्म का वरदान हर व्यक्ति नहीं प्राप्त कर पाता है. आघ्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के लिए आपकी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति (Placement of planents in the chart determines the spiritual knowledge) भी काफी मायने रखती है. आप ईश्वर में श्रद्धा रखते हैं और अपनी आध्यात्मिक स्थिति को जानना चाहते हैं तो इसके लिए प्रश्न कुण्डली सबसे सुन्दर और सरल (Simple methods of prashna kundali to know the spiritual nature of a person) उपाय है. ज्योतिर्विद बताते हैं कि जब आप कुण्डली से अध्यात्मिक स्थिति का विचार करते हैं तब आपकी कुण्डली में नवम भाव का अध्ययन किया जाता है.

अध्यात्म के संदर्भ में बुध, बृहस्पति, शनि, राहु केतु कारक (Spiritual significators are Mercury, Jupiter, Saturn, Rahu and ketu) माने जाते हैं. ज्योतिष के मर्मज्ञ बताते हैं कि सभी ग्रह इस सम्बन्ध में अलग अलग प्रभाव और परिणाम प्रदान करते हैं. नवम भाव में विभिन्न ग्रहों की स्थिति के आधार पर आपके अध्यात्मिक स्तर का अध्ययन करें तो पाते हैं कि इस भाव में बृहस्पति (Jupiter in ninth house) की मौजूदगी होने से आप धार्मिक पुस्तकों एवं नीति के ज्ञाता होते है, आप ज्ञान के स्तर पर अध्यात्म की गहराईयों को समझते हैं परंतु, आपका ज्ञान वाह्य होता है आप ज़मीनी स्तर पर अर्थात अध्यात्म को व्यवहार में शामिल नहीं कर पाते हैं. नवम भाव में शनि (Saturn in ninth house) के शुभ होकर स्थित होने से आप अध्यात्म की गहराईयों में उतरते हैं, आपका अध्यात्मिक ज्ञान सिर्फ शब्दों एवं वाक्यों में लिपटा नहीं होता है बल्कि आप अध्यात्म को व्यवहार में लाते हैं, आप सेवा भाव रखने वाले होते हैं और कामना रहित होकर जनसेवा करते हैं. नवम भाव में राहु (Rahu in ninth house) होने से आपकी आध्यात्मिकता पर राजनैतिक रंग चढ़ता है. अध्यात्म के प्रति रूझान रहने के बावजूद आप इस क्षेत्र में श्रेष्ठता की इच्छा रखते हैं, आप चाहते हैं कि आगे बढ़कर नेतृत्व का परचम अपने हाथों में थामें और आपको अपनी अध्यात्मिक प्रवृति और ज्ञान के कारण यश कीर्ति प्राप्त हो तो आप समझ सकते हैं कि आपकी कुण्डली के नवम भाव में राहु उपस्थित है और वह आपको दिशा निर्देश दे रहा है.
जीवात्मा के अंतिम लक्ष्य और अध्यात्म की पराकाष्ठा का होना नवम भाव में केतु की स्थिति से ज्ञात होता है. नवम भाव में केतु(Ketu in ninth house) की स्थिति से ज्ञात होता है कि आप अपने अध्यात्मिक शक्ति के बल पर योनि चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे अथवा नहीं.
अध्यात्म और मुक्ति के संदर्भ में इष्टोपासना की भी विवेचना की जाती है. ज्योतिर्विद बताते हैं कि आपकी कुण्डली में स्थित ग्रहों से ज्ञात होता है कि आप किस देवी/देवता को इष्ट मानकर पूजन करेंगे तो आपको जल्दी और बेहतर फल की प्राप्ति होगी. नवम भाव में अगर स्त्री ग्रह चन्द्रमा शुक्र योग कारक हैं तो इस स्थिति में अगर आप देवी की आराधना करते हैं तो आपको इष्ट लाभ मिलता है.

सूर्य ग्रह सूर्य या निराकार शक्ति का प्रतीक होता है आप निराकार ब्रह्म (Nirakara brahma) अथवा सूर्य की उपासना कर सकते हैं. मंगल (Mars) की उपस्थिति हनुमान जी, गणेश जी तथा कार्तिकेय की साधना करने का संकेत देती है. बुध (Mercury and Jupiter) एवं बृहस्पति ग्रह के उपस्थित होने से भगवान विष्णु उनके अवतारों श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की भक्ति करना विशेष फलदायक होता है. आपकी कुण्डली के नवम भाव में अगर चन्द्र (Moon in ninth house) मौजूद हों तब आप चाहें तो देवी की आराधना कर सकते हैं अथवा भगवान शंकर की उपासना कर सकते हैं दोंनों ही आपके लिए मंगलकारी रहेंगे. इस भाव में आपकी कुण्डली में शनि देव मौजूद हैं तो आप बिना किसी लालसा के सेवा को ही भक्ति स्वरूप मानेंगे और शनि देव की उपासना करते हैं इसी से आपको संतोष धन की प्राप्ति होती है. आपकी कुण्डली के नवम भाव में अगर राहु (Rahu in ninth house) स्थित हैं तो आप तंत्र साधना की ओर उन्मुख हो सकते हैं, आप काली, भैरव या दशमहाविद्या की साधना करके अपने इष्ट को आसानी से प्राप्त करते हैं. भक्ति और अध्यात्म के शिखर पर पहुंचने में आपकी कुण्डली के नवम भाव में स्थित केतु सहयोग प्रदान करता है. इस भाव में केतु के होने से आप जिस किसी भी देवी/देवता की अराधना करते हैं वे आपको मुक्ति का वरदान देते हैं.
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि आप अपनी कुण्डली के नवम भाव में स्थित ग्रहों से आप अपनी आध्यात्मिक स्थिति का ज्ञान(Ninth house signifies the spiritual knowledge) प्राप्त कर सकते हैं और इष्ट का चुनाव कर अभिष्ट फल (Desire result) प्राप्त कर सकते हैं.
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प्रश्न कुण्डली से जानिए अपनी आयु (Prashna kundli on span of life)

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संसार में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो यह नहीं जानना चाहता हो कि उसकी आयु कितनी होगी, शायद आपके मन में भी यह उत्सुकता होगी.आपने भी कभी न कभी किसी को हाथ दिखाकर जानना चाहा होगा कि जीवन रेखा कितनी लम्बी है.
अगर आप अपनी इस उत्सुकता को शांत करना चाहते हैं तो प्रश्न कुण्डली के माध्यम से इसे आसानी से जान सकते हैं. ज्योतिष शास्त्री कहते हैं कि ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जाना चाहिए परंतु मनुष्य जिज्ञासु प्राणी है अत: अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मनुष्य प्रश्न कुण्डली की सहायता ले सकता है. प्रश्न कुण्डली में आयु और मृत्यु के सम्बन्ध में अष्टम भाव (Eighth house determines the span of life) से विचार जाता है. शनि ग्रह को आयु का कारक (Saturn is the significator of span of life) माना जाता है. कुण्डली मे अष्टम भाव/अष्टमेश (8th house and Lord of 8th house) तथा शनि के साथ ही यदि लग्न/लग्नेश (Ascendant and Lord of ascendant) भी शुभ होकर बलवान स्थिति में तो व्यक्ति की आयु काफी लम्बी होती है अर्थात व्यक्ति चिरायु होता है. लम्बी आयु के संदर्भ मे माना जाता है कि अष्टम भाव में शुभ ग्रह (बुध, बृहस्पति या शुक्र) हो (Mercury, Jupiter and Venus) तो व्यक्ति लम्बे समय तक धरती का सुख प्राप्त करता है.

उपरोक्त भाव एवं ग्रह शुभ-अशुभ मिश्रित होने से व्यक्ति की आयु सामान्य होती है अर्थात मध्यम आयु का स्वामी होता है.यहां गौर तलब बात यह है कि जब बच्चे की आयु के सम्बन्ध में कुण्डली से विचार किया जाता है तो चन्द्र की स्थिति का भी आंकलन किया जाता है (Placement of Moon is also important to know the life sapn of child). ज्योतिर्विद कहते हैं कि अष्टम भाव आयु स्थान होता है जो त्रिक भाव (Trik Bhava) कहलाता है.इस भाव में जो भी ग्रह होते हैं उस ग्रह की हानि होती है.इस विषय मे यह भी सिद्धान्त मान्य है कि इस भाव में शुभ ग्रह के होने से आयु की वृद्धि होती है. मंगल, राहु और केतु जैसे पाप ग्रहों (Mars, Rahu and Ketu are malefic planets) के इस भाव मे होने से आयु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.इस स्थिति में व्यक्ति के दु्र्घटना एवं षडयन्त्र में फंसने की संभावना रहती है.
अष्टम भाव के पाप पीड़ित होने तथा अष्टमेश (Lord of eighth house) के कमजोर स्थिति में होने से आयु का क्षय होता है.यदि लग्न/लग्नेश भी कमजोर स्थिति में
 हों तो स्थिति में प्रतिकूलता आती है.इस विषय से सम्बन्धित परिणाम को जानने के लिए ग्रहों की दृष्टि का भी अवलोकन किया जाता है. आयु के संदर्भ में अष्टम भाव या अष्टमेश (8th house and Lord of eighth house) पर शुभ ग्रह की दृष्टि आयु सम्बन्धी शुभ फल प्रदान करती है जबकि पाप ग्रह की दृष्टि आयु को कम करती है और मृत्यु की ओर ले जाती है. ग्रहों में शनि ग्रह का बलवान होना आयु की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि शनि ग्रह अपने स्वभाव के अनुरूप जीवन के प्रारम्भिक अवस्था अर्थात बाल्यकाल में स्वास्थ्य सम्बन्धी एवं अन्य प्रकार की परेशानियां देता है परंतु जैसे जैसे आयु बढ़ती जाती है व्यक्ति के सुख में वृद्धि होती जाती है. प्रश्न कुण्डली में अगर शनि कमजोर अथवा अशुभ स्थिति में (Saturn in the debilitated in prashna kundli) हो तो परिणाम इसके विपरीत होता है अर्थात व्यक्ति प्रारम्भिक काल में सुख प्राप्त करता है परंतु आयु बढ़ने के साथ ही साथ व्यक्ति की तकलीफें भी बढ़ती जाती हैं. 

इस तरह हम ग्रहों की स्थिति को देखकर व्यक्ति की आयु एवं मृत्यु का आंकलन कर सकते हैं (Placement of planets determines the span of life).
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प्रश्न कुण्डली में तृतीय भाव (Third House in prashna kundali)

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जैसे किसी स्कूल अथवा कालेज को सुचारू पूर्वक चलाने के लिए अलग अलग संकाय या विभाग का निर्माण किया जाता है और उनका कार्य बँटा होता है।कुण्डली में भी 12 घर यानी 12 भाव (12th houses) होते हैं।
कुण्डली के सभी भाव का अपना महत्व (specific relevance of house) होता है, हर भाव के पास अपना विभाग होता है जैसे द्वितीय भाव के पास धन, कुटुम्ब परिवार एवं वाणी का विभाग होता है उसी प्रकार तृतीय भाव के पास कुछ विभाग हैं।
तृतीय भाव इन्हीं विभागों यानी विषयों के सम्बन्ध में प्रभाव उत्पन्न करता है। प्रश्न कुण्डली में तृतीय भाव किस कदर महत्व रखता यहां हम इसकी विवेचना करते हैं।
ज्योतिर्विदों के अनुसार प्रश्न कुण्डली में तृतीय भाव छोटे भाई/बहन, छोटी दूरी की यात्राएं, पराक्रम एवं परिवर्तन के विषय (Third house says about brother and sister, journey and strength) में संकेत देता है। कुण्डली में तृतीय भाव का कारक मंगल (Mars is the significator of third house) ग्रह होता है। इस भाव पर वैदिक ज्योतिष के सामान्य नियम लागू होते हैं।
प्रश्न कुण्डली में प्रश्न के आधार पर जब तृतीय भाव कार्य भाव के रूप में कार्य करता है तब भाव सम्बन्धी प्रश्न का फल स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है। इसे समझने के लिए हम एक उदाहरण लेते हैं मान लीजिए आपने जानना चाहा कि आपके अपने अपने छोटे भाई/बहनों के साथ कैसे सम्बन्ध रहेंगे।
इस प्रश्न का जवाब देने के लिए ज्योतिष महोदय प्रश्न के समय के आधार पर प्रश्न कुण्डली का निर्माण करेंगे। चूंकि प्रश्न का सम्बन्ध छोटे भाई/बहन से है इसलिए तृतीय भाव कार्य भाव (Karya Bhava) के रूप में कार्य करेगा। यहां गौर तलब बात है कि मंगल चूंकि छोटे भाई/बहनों का कारक है इसलिए इसका भी महत्वपूर्ण प्रभाव रहेगा।

लग्न/लग्नेश (Ascendnt and ascendant Lord), तृतीय भाव/तृतीयेश (Third house and Lord of third house) तथा मंगल यदि शुभ होकर बलवान स्थिति में हो तो आपके अपने भाई/बहनों से उत्तम सम्बन्ध रहते हैं। इस संदर्भ में कहा जाता है कि कुण्डली में भाव एवं ग्रह जितने शुभ स्थिति में होंगे आपके सम्बन्ध उतने ही अच्छे रहते हैं। उपरोक्त भाव एवं ग्रह अशुभ स्थिति में या कमजोर हों तो सम्बन्धों में तनाव की स्थिति रहती है।
जिस प्रकार से हमने इस प्रश्न का उत्तर ज्ञात किया, इसी प्रकार इस भाव से सम्बन्धित अन्य प्रश्नों का उत्तर भी सामान्य सिद्धान्त के अनुसार प्राप्त कर सकते हैं अर्थात प्रश्न छोटी दूरी की यात्राओं से सम्बन्धित हो या परिवर्तन से, सभी में एक ही नियम लागू होता है।
ज्योतिषाचार्य की मानें तो प्रश्न के उत्तर या फल के घटित होने के बारे में जानने के लिए चन्द्रमा (Moon) से विचार किया जाता है, यहां भी आप तथ्य को समझने के लिए उदाहरण पर दृष्टिपात कर सकते हैं मान लीजिए आपने प्रश्न किया कि सामान्य तौर पर छोटी दूरी की यात्रा करना लाभप्रद रहेगा।
प्रश्न का जवाब ढूंढने के लिए प्रश्न कुण्डली के सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए सबसे पहले लग्न/लग्नेश, तृतीय भाव/तृतीयेश एवं कारक मंगल ग्रह (Mars) की स्थिति का विश्लेषण किया जाएगा। उपरोक्त भाव एवं ग्रह शुभ होकर बलवान स्थिति में हैं तो आपके लिए छोटी दूरी की यात्राएं लाभकारी रहती हैं।
चन्द्रमा की तृतीय भाव (Moon in third house) या तृतीयेश पर दृष्टि हो तो यात्रा में सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। इस संदर्भ में माना गया है कि किसी कार्य को सफल बनाने के लिए चन्द्रमा की दृष्टि महत्वपूर्ण होती है क्योंकि चन्द्रमा की दृष्टि से सफलता की निश्चितता का पता चलता है।
प्रश्न कुण्डली के कृष्णमूर्ति पद्धति से इन्हीं प्रश्नों का जब हम जवाब ढूंढते हैं तब वैदिक सिद्धान्त से अलग इसमें ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्रों (Nakshatras) का विश्लेषण किया जाता है। इसमें नक्षत्र भागेश को फलादेश (Phaladesh) की दृष्टि से सर्वाधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि इसमें प्रश्न का परिणाम क्या होगा यह नक्षत्र भागेश तय करता है। नक्षत्र भागेश नक्षत्र (Bhogesh Nakshatras) का ही भाग होता है।
प्रश्न कुण्डली की दोनों पद्धतियां प्रचलन में हैं ज्योतिषशास्त्री अपनी इच्छा, व्यक्तिगत ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर जिस पद्धति से चाहें तृतीय भाव का आंकलन कर सकते हैं।

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