भगवान दत्तात्रेय का परिचय
भगवान दत्तात्रेय का परिचय
भगवान दत्तात्रेय की जयंती
मार्गशीर्ष माह में मनाई जाती है। दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप
समाहित हैं इसीलिए उन्हें 'परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु'और 'श्रीगुरुदेवदत्त'भी
कहा जाता हैं। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साथक, योगी और वैज्ञानिक
माना जाता है। हिंदू मान्यताओं अनुसार दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान
उड्डयन की शक्ति का पता लगाया था और चिकित्सा शास्त्र में क्रांतिकारी
अन्वेषण किया था।
हिंदू
धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के
लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का
स्वरूप भी कहा जाता है। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी
विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा
का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक
भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक
ही संप्रदाय निर्मित किया था।
शिक्षा और दीक्षा : भगवान
दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय ने अन्य पशुओं
के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। दत्तात्रेयजी कहते हैं
कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें
अपना गुरु माना है, इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु,
आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग,
मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी।
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