Sunday 17 February 2013

कालांश और विंशोत्तरी दशा में सम्बन्ध (Relationship between Kalansha and Vimshottari Dasha)

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आधुनिक ज्योतिष परम्परा में कृष्णमू्र्ति महोदय ने एक नयी विधा को जन्म दिया है। यह विधा वैदिक ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांतों का अनुपालन करता है लेकिन फिर भी यह कुछ बातों में वैदिक ज्योतिष से अलग मत रखता है।
सामान्यतौर पर बात करें तो जहां मूल वैदिक ज्योतिष राशियों को आधार मानकर फलादेश करता है वहीं कृष्णमूर्ति महोदय की ज्योतिष पद्धति नक्षत्रों को महिमा मंडित करता है (Vedic Jyotish depends on Moon sign and the Krishnamurthy system is based on the Nakshatra)।
कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्रों के विभाजन में जिस सिद्धांत को अपनाया गया है वह वैदिक ज्योतिष के विंशोत्तरी दशा पर आधारित है (In Krishnamoorthy system, divison of Nakshatra is done on the basis of Vimshottari Dasha)। इस आधार पर देखा जाय तो कृष्णमूर्ति महोदय के कालांश और वैदिक ज्योतिष के विंशोत्तरी दशा के बीच निकट सम्बन्ध है। के.पी. महोदय की प्रणाली में नक्षत्रों की अवधि 13डिग्री 20 मिनट को 9 सूक्ष्म भागों में वांटा है।  इन सभी भागों का स्वामी अलग अलग ग्रह होता है। विंशोत्तरी दशा में जिस ग्रह का कालावधि जितना होता है उसी अनुपात में ग्रहों का समय निश्चित किया गया है। समय का यह अंश कालांश कहा गया है और इसके स्वमी को कालांश स्वामी के नाम से सम्बोधित किया गया है।

विंशोत्तरी दशा में व्यक्ति की मानक आयु 120 वर्ष है (According to Vimshottari Dasha average Human life span is 120 years) । इन वर्षों में व्यक्ति को विभिन्न ग्रहों की दशाओं से गुजरना होता है। हर ग्रह की एक निश्चित अवधि होती है और उस अवधि में उस ग्रह के प्रभाव के अनुरूप व्यक्ति को फलाफल मिलता है। के. पी. पद्धति में भी इसी प्रकार के सिद्धांत का अनुपालन किया गया है।  इसमें फलित के निकट पहुंचने के लिए एक गणितिय विधि का प्रयोग किया गया है जिसमें विंशोत्तरी दशा की कुल अवधि यानी 120 से नक्षत्रों की कुल अवधि यानी 13 डिग्री 20 को घंटे में ज्ञात कर यानी 800 में विंशोत्तरी दशा में मौजूद ग्रहों की दशा के वर्ष से गुणा किया जाता है। इस गणितिय विधि से जो अंक प्राप्त होता है वह कालांश क्षेत्र या ग्रहों का उपक्षेत्र कहलाता है। 
उपरोक्त तथ्यों को आप इस प्रकार समझ सकते हैं।       
                                   800
ग्रहों की दशा का वर्ष  x  ---------    =  ग्रहों का उपक्षेत्र या कालांश क्षेत्र
                                  120
इस प्रकार कृष्णमूर्ति पद्धति में विभिन्न ग्रहों की दशा, विंशोत्तरी दशा के आधार पर निर्धारित की गई है और दोनों में काफी कुछ समानता है। कृष्णमूर्ति पद्धति में ग्रहों के कालांश क्षेत्र में कमी होने से प्राचीन वैदिक ज्योतिष प्रणाली की तरह इस नवीन पद्धति से भी फलादेश सटीक ज्ञात किया जा सकता है। 
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