मोक्ष
यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामाये स्य हृदिश्रिता: ।
इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति मुक्ति के लिए संघर्षरत रहता है । भूख से
मुक्ति के लिए वह भोजन का प्रबन्ध करता है । सर्दी-गर्मी से मुक्ति के लिए
वह मकान,
वस्त्र आदि का प्रबन्ध करता है;
तनाव से मुक्ति के लिए मनोरंजन के साधनों को खोजता है;
रोग से मुक्ति के लिए औषधियों और शल्य-चिकित्सा का सहारा लेता है;
अज्ञान से मुक्ति के लिए शिक्षा ग्रहण करता है,
असुरक्षा से मुक्ति के लिए राजनीतिक व्यवस्था तथा निर्धनता से मुक्ति के
लिए अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाता है । फिर भी उसका मन अनन्त इच्छाओं का
जाल फैलाता है और उनसे उनकी पूर्ति न हो पाने पर दु:ख का अनुभव करता है ।
यही मन प्रिय जनों में राग उत्पन्न करता है और उनसे वियोग होने पर शोकाकुल
हो जाता है । यह मन भविष्य की चिन्ताओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर वर्तमान के
सुख को छीन लेता है । प्राणों का मोह मन में मृत्यु-भय उत्पन्न करता है ।
उन सबसे मुक्ति भौतिक पदार्थों या भौतिक सुख-सुविधा के साधनों से नहीं मिल
सकती । अध्यात्म के माध्यम से ही दु:ख,
शोक और मृत्यु-भय से मुक्ति मिल सकती है जिसे मोक्ष कहते हैं । मोक्ष का
पहला मूलमंत्र है इच्छाओं की पूर्ति से परितृप्त होकर भौतिक सुखों के लिए
इच्छाओं की निस्सारता को समझ कर इच्छाओं का त्याग करना-
यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामाये स्य हृदिश्रिता: ।
अथ
मर्त्यो
मृतो
भवत्यत्र
ब्रह्म
समश्नुते
।
(जब
हृदय की समस्त
इच्छाएँ
समाप्त हो जाती हैं तब मर्त्य अमर हो जाता है और इस जीवन में ब्रह्म की
प्राप्ति कर लेता है।)
यदा सर्वे प्रभिद्यन्ते हृदयस्येह ग्रन्थय: ।अथ मर्त्यो मृतो भवत्येतावद्धरनुशासनम् ।
(जब
हृदय की समस्त सांसारिक
ग्रन्थियाँ
अलग हो जाती हैं तो मर्त्य अमर हो जाता है । यहीं समस्त शिक्षा का अन्त
होता है।)
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