Tuesday 19 February 2013

मोक्ष

                                          मोक्ष


इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति मुक्ति के लिए संघर्षरत रहता है । भूख से मुक्ति के लिए वह भोजन का प्रबन्ध करता है । सर्दी-गर्मी से मुक्ति के लिए वह मकान, वस्त्र आदि का प्रबन्ध करता है; तनाव से मुक्ति के लिए मनोरंजन के साधनों को खोजता है; रोग से मुक्ति के लिए औषधियों और शल्य-चिकित्सा का सहारा लेता है; अज्ञान से मुक्ति के लिए शिक्षा ग्रहण करता है, असुरक्षा से मुक्ति के लिए राजनीतिक व्यवस्था तथा निर्धनता से मुक्ति के लिए अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाता है । फिर भी उसका मन अनन्त इच्छाओं का जाल फैलाता है और उनसे उनकी पूर्ति न हो पाने पर दु:ख का अनुभव करता है । यही मन प्रिय जनों में राग उत्पन्न करता है और उनसे वियोग होने पर शोकाकुल हो जाता है । यह मन भविष्य की चिन्ताओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर वर्तमान के सुख को छीन लेता है । प्राणों का मोह मन में मृत्यु-भय उत्पन्न करता है । उन सबसे मुक्ति भौतिक पदार्थों या भौतिक सुख-सुविधा के साधनों से नहीं मिल सकती । अध्यात्म के माध्यम से ही दु:ख, शोक और मृत्यु-भय से मुक्ति मिल सकती है जिसे मोक्ष कहते हैं । मोक्ष का पहला मूलमंत्र है इच्छाओं की पूर्ति से परितृप्त होकर भौतिक सुखों के लिए इच्छाओं की निस्सारता को समझ कर इच्छाओं का त्याग करना- 




यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामाये स्य हृदिश्रिता:
     अथ  मर्त्यो  मृतो  भवत्यत्र   ब्रह्म  समश्नुते ।
 (जब हृदय की समस्त इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं तब मर्त्य अमर हो जाता है और इस जीवन में ब्रह्म की प्राप्ति कर लेता है।)
      यदा  सर्वे  प्रभिद्यन्ते   हृदयस्येह  ग्रन्थय:
      अथ मर्त्यो मृतो भवत्येतावद्धरनुशासनम्
(जब हृदय की समस्त सांसारिक ग्रन्थियाँ अलग हो जाती हैं तो मर्त्य अमर हो जाता है । यहीं समस्त शिक्षा का अन्त होता है।) 




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