Tuesday 19 February 2013

हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में

हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में 



हिन्दू विचारों को प्रवाहित करने वाले वेद हैं, उपनिषद् हैं, स्मृतियां हैं, षड्-दर्शन हैं, गीता, रामायण और महाभारत हैं, कल्पित नीति कथाओं और कहानियों पर आधारित पुराण हैं । ये सभी ग्रन्थ हिन्दुत्व के उद्विकास एवं उसके विभिन्न पहलुओं के दर्शन कराते हैं । इनकी तुलना विभिन्न स्थलों से निकलकर सद्ज्ञान के महासागर की ओर जाने वाली नदियों से की जा सकती है । किन्तु ये नदियाँ प्रदूषित भी हैं । उदाहरण के लिए झूठ पर आधारित वर्ण व्यवस्था को सही ठहराने और प्राचीन स्वरूप देने के लिए ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में कुछ अंश जोड़ा गया । ऊँच-नीच की भावना पैदा करने के लिए अनेक श्लोक गढ़कर मनुस्मृति के मूल स्वरूप को नष्ट कर दिया गया । पुराणों में इतनी अधिक काल्पनिक कथाएँ जोड़ी गयीं कि वे पाखण्ड एवं अंधविश्वास के आपूर्तिकर्ता बन गये । आलोचनाओं में न उलझकर किसी भी ग्रन्थ के अप्रासंगिक अंश को अलग करने पर ही हिन्दुत्व का मूल तत्त्व प्रकट होता है । 





वस्तुत: सामान्य हिन्दू का मन किसी एक ग्रन्थ से बँधा हुआ नहीं है । जैसे ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है किन्तु वहां जीवन्त संसदीय लोकतन्त्र है और अधिकांश लोकतान्त्रिक प्रक्रिया परम्पराओं पर आधारित है; उसी प्रकार सच्चे हिन्दुत्व का वास हिन्दुओं के मन, उनके संस्कार और उनकी महान् परम्पराओं में है । 



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