Tuesday 19 February 2013

विजय दशमी

विजय दशमी 



वर्षा ऋतु के पश्चात् आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ होने तक नयी फसल कृषकों के घर आ जाती है । इसी पक्ष में दशमी के दिन राम द्वारा रावण के प्रतीकात्मक वध का आयोजन किया जाता है । संस्कृत भाषा में रावण का अर्थ क्रन्दन करने वाला, शोक के कारण रोने-धोने वाला, चीखने वाला, दहाड़ने वाला तथा राम का अर्थ आनन्ददाता होता है । नई फसल के आने से किसान के शोक-संतप्त मन का संहार होता है तथा उसका स्थान प्रफुल्ल मन ले लेता है । शोक और रुदन के प्रतीक रावण को मार कर आनन्द के प्रतीक राम का पदार्पण होता है । कहा गया है कि  ‘बुभुक्षित: किं न करोति पापम्’। जब अभाव की स्थिति समाप्त होती है तो मन पाप या बुरे कर्म से विरत होकर अच्छाई की ओर अग्रसर होने लगता है । अत: विजय दशमी को बुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है । उत्तर भारत में विजयादशमी को दशहरा भी कहा जाता है जो ‘दश’ (दस) एवं  ‘अहन्’ से बना है । विजयादशमी वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा । इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं । प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा पर निकलते थे । 








हिन्दुओं में एक वर्ग का मत है कि विजय दशमी और दीपावली के पर्व दशरथनंदन श्री राम के लंका पर विजय तथा उनकी अयोध्या वापसी से जुड़े हैं । इस सम्बन्ध में यह द्रष्टव्य है कि वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद के आगमन पर भी जब सुग्रीव ने राम की सुधि नहीं ली तो लक्ष्मण के माध्यम से उसे संदेश भेजा गया । इसके बाद खोजी दल एकत्र किया गया । सीता की खोज के कार्य में भी एक माह से अधिक का समय लगा । सेना को संगठित कर लंका के निकट पहुँचने और समुद्र पर पुल का निर्माण कर युद्ध प्रारम्भ करने में भी पर्याप्त समय लगा होगा । वर्षा ऋतु समाप्ति के डेढ़ माह के अन्दर ही दोनों पर्व पड़ जाते हैं । अत: उपर्युक्त धारणा या विश्वास को प्रश्रय नहीं दिया गया है । 


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