दीपावली
कार्तिक
मास की अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है और ‘तमसो
मा ज्योतिर्गमय’ के विचार पर आधारित है । अमावस्या की रात अंधकार की
प्रतीक है और दीपावली प्रकाश की । इस दिन गणेश-लक्ष्मी की पूजा एक साथ की
जाती है । इसके औचित्य पर निम्न पंक्तियों में प्रकाश डाला गया है -
पर्व दीवाली जलते दीप उतरता नभ
मनु महि पर आज ।
विष्णुकांता गणपति के साथ सभी गृह आंगन रहीं विराज।
ईश का
सब धन लक्ष्मी रूप सुशोभित जन-गण रूप गणेश ।
प्रकृति का दिया सदा मिल बांट सभी उपभोग करें सब देश ।
गणेश (गण+ईश) जन-समूह के प्रतिनिधि हैं और लक्ष्मी धन की प्रतीक हैं । धन के सामूहिक उपभोग में जो आनन्द है वह एकल उपभोग में नहीं मिल सकता । प्रीतिभोज, ब्रह्म-भोज तथा विवाह आदि अवसरों पर दिये गये निमंत्रणों एवं आगंतुकों के सत्कार पर स्वेच्छा से किये गये व्यय से इसकी पुष्टि होती है । गणेश और लक्ष्मी की एक साथ पूजा इसी संदेश को घर-घर पहुँचाती है ।
हिन्दुओं में एक वर्ग का मत है कि विजय दशमी और दीपावली के पर्व दशरथनंदन
श्री राम के लंका पर विजय तथा उनकी अयोध्या वापसी से जुड़े हैं । इस
सम्बन्ध में यह द्रष्टव्य है कि वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद के आगमन पर
भी जब सुग्रीव ने राम की सुधि नहीं ली तो लक्ष्मण के माध्यम से उसे संदेश
भेजा गया । इसके बाद खोजी दल एकत्र किया गया । सीता की खोज के कार्य में भी
एक माह से अधिक का समय लगा । सेना को संगठित कर लंका के निकट पहुँचने और
समुद्र पर पुल का निर्माण कर युद्ध प्रारम्भ करने में भी पर्याप्त समय लगा
होगा । वर्षा ऋतु समाप्ति के डेढ़ माह के अन्दर ही दोनों पर्व पड़ जाते हैं
। अत: उपर्युक्त धारणा या विश्वास को प्रश्रय नहीं दिया गया है
।
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