शरीर के
पालन-पोषण
के लिए धन की आवश्यकता होती है । अत: धन के महत्त्व को स्वीकार करते हुए
परमात्मा जिस रूप में समस्त धन का स्वामी है उसे लक्ष्मी कहा गया है ।
दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी की पूजा की जाती है । व्यवसायी वर्ग तो
प्राय: नित्य ही लक्ष्मी की पूजा करता है । परमात्मा ही पालनकर्ता है और वह
ही धन का स्वामी भी है । अत: लक्ष्मी को प्रतीकात्मक रूप में विष्णु से
सम्बद्ध किया गया है जिसके पीछे यह सन्देश निहित है कि धन का उपयोग
पालन-पोषण के लिए किया जाना चाहिए । ऋग्वेद में
‘पणि’
अर्थात् कंजूस को अपावन मनुष्य के रूप में देखा गया है । धनोपार्जन के लिए
कर्म करना आवश्यक है।ईशावास्योपनिषद् में कहा गया है कि कर्मशील रहकर ही सौ
वर्षों तक जीने की इच्छा करनी चाहिए । कुछ व्यक्तियों के हाथों में धन का
केन्द्रीकरण न हो इसके लिए इसी उपनिषद् के प्रथम मन्त्र में यह स्पष्ट किया
गया है कि इस चराचर जगत् में जो कुछ भी उपलब्ध है उसका वास्तविक स्वामी
ईश्वर ही है । प्रत्येक व्यक्ति को त्याग भाव से अपना पालन-पोषण करना चाहिए
। अर्थशास्त्र में राजनीति विज्ञान को सम्मिलित करते हुए राजा से यह
अपेक्षा की गयी है कि वह अपने राज्य को समृद्धिशाली बनाने के लिए विशेष
प्रयत्न करे
।
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