Tuesday 19 February 2013

ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें

            ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें  






हिन्दुत्व कहता है कि ईश्वर हमारा परमपिता है, हम उसकी संतान हैं । वही बच्चा अपने माता-पिता से डरता है जो गलत काम करता है या उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करता है । ईश्वर की इच्छा क्या हो सकती है? अपनी सृष्टि को बनाये रखना ही उसकी इच्छा है । वह पालनकर्ता है, हम भी किसी न किसी के पालन-पोषण में सहायक बनें । अपनी स्त्री और संतान का उचित लालन-पालन भी उत्तम कार्य है । वह दयालु है, हम भी दया दिखायें । वह समदर्शी है, हम भी यथासम्भव समानता एवं न्याय को जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान दें । यह प्रकृति ही ईश्वर का शरीर है । प्रकृति से प्रेम ईश्वर से प्रेम करने के समान ही है । हम ईश्वर और उसकी प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करें । 



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ईश्वर न तो चाटुकारिता से प्रसन्न होता है, न ही बलि से और न ही धन और रुपया-दान से । हम अकर्मण्य रहकर राम-राम जपते रहें और चाहें कि हमारी चाटुकारिता से प्रसन्न होकर ईश्वर हमें सारे सुख-साधन उपलब्ध करा दे तो यह हमारी भूल है ।
पशु-पक्षियों की बलि से ईश्वरीय न्याय में बाधा पहुँचती है । हिंस्र पशु भी अकारण शिकार नहीं करते । ईश्वर या किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए यदि किसी को बलि देना है तो उसे अपने अहं की बलि देना चाहिए । 


समस्त धन-सम्‍पत्ति का अनन्त काल का स्वामित्व ईश्वर का ही है, अत: धन-सम्‍पत्ति से उसे नहीं रिझाया जा सकता । धन-सम्‍पत्ति का दान पुजारियों के भरण-पोषण एवं मन्दिरों के अनुरक्षण के लिए किया जाता है । 


जहाँ-जहाँ राजतंत्र है, प्रत्येक राजकुमार स्वयं को शासन एवं राज-काज संचालन के योग्य मानता है । ऐसा ही भाव प्रत्येक व्यक्ति को रखकर यह समझना चाहिए कि वह भी परमपिता परमेश्वर की संतान है । इस प्रकार लोकतंत्र में वह हीनभावना से मुक्त होकर अपनी क्षमता के अनुसार अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है । 





ईश्वर में विश्वास भय से मुक्त करता है । ईश्वर में अति विश्वास और अपार श्रद्धा से मृत्यु के भय से भी मुक्ति मिलती है । जल की एक बूँद को महासागर से क्या भय; महासागर में गिरकर बूँद का अस्तित्व महासागर में विलीन हो जायेगा । बूँद भी महासागर बन जायेगी । हिन्दुत्व का सर्वोच्च विचार प्रलय से भी भयभीत नहीं है क्योंकि उस समय कर्मफल से सबको मुक्ति मिल जाती है । कयामत के समय किसी से पुण्य-पाप का हिसाब नहीं लिया जाता । स्वर्ग नरक का अस्तित्व नहीं है । अत: किसी को इन स्थानों पर भेजे जाने का प्रश्न ही नहीं उठता । प्रलय के समय सभी मुक्त होकर ब्रह्ममय हो जाते हैं । 




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