स्त्री आदरणीय है
संसार में
हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो ईश्वर या परमात्मा को स्त्रीवाचक शब्दों जैसे
सरस्वती माता, दुर्गा माता, काली मैया, लक्ष्मी माता से भी संबोधित करता है
। वही हमारा पिता है, वही हमारी माता है (त्वमेव
माता च पिता त्वमेव) । हम कहते हैं राधे-कृष्ण, सीता-राम अर्थात्
स्त्रीवाचक शब्द का प्रयोग पहले । भारतभूमि भारतमाता है । पशुओं में भी गाय
गो माता है किन्तु बैल पिता नहीं है । हिन्दुओं में ‘ओम्
जय जगदीश हरे’ या ‘ॐ नम: शिवाय’ का
जितना उद्घोष होता है उतना ही ‘जय माता की’
का भी । स्त्रीत्व को अत्यधिक आदर प्रदान करना हिन्दू जीवन पद्धति के
महत्त्वपूर्ण मूल्यों में से एक है । कहा गया है :-
यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र
देवता: ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।
जहां पर
स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमते हैं । जहाँ उनकी पूजा नहीं
होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं ।
शोचन्ति
जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न
शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि
सर्वदा ।
जिस कुल
में स्त्रियाँ दु:खी रहती हैं, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है । जहां वे
दु:खी नहीं रहतीं, उस कुल की वृद्धि होती है ।
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